ईरान का ‘मददगार’ पाकिस्तान बन सकता है भविष्य का खतरा

तेहरान — इजराइल से ताजा सैन्य तनाव के बाद ईरान ने जिन देशों को अपना सहयोगी बताया, उनमें पाकिस्तान भी शामिल है। ईरान के आर्मी चीफ जनरल अब्दुल रहीम मोसावी ने पाकिस्तान के समकक्ष जनरल असीम मुनीर से फोन पर बातचीत कर युद्धकाल में ‘सहयोग’ के लिए धन्यवाद दिया। यह कूटनीतिक संपर्क ऐसे समय हुआ है जब ईरान अंतरराष्ट्रीय समर्थन की तलाश में है, लेकिन विश्लेषकों की राय में ईरान की यह समझदारी आने वाले समय में भारी पड़ सकती है।

पाकिस्तान, जो दशकों से अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी रहा है, परंपरागत रूप से पश्चिमी हितों के अनुरूप काम करता आया है। 1990 के दशक में अमेरिका के कहने पर पाकिस्तान ने आतंकवादी संगठनों को समर्थन दिया, इसकी पुष्टि हाल ही में खुद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ कर चुके हैं। अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना को समर्थन देना हो या सीमावर्ती क्षेत्रों में छद्म युद्ध को बढ़ावा देना—पाकिस्तान का इतिहास सहयोग की बजाय अवसरवादिता का रहा है।

ईरान-पाकिस्तान सीमा करीब 909 किमी लंबी है, इसके बावजूद जंग के दौरान पाकिस्तान ने ईरान की मानवीय मदद तक नहीं की। न बॉर्डर खोला, न कोई आपूर्ति भेजी। उलटे जब ईरान ने कतर पर मिसाइल दागी, तो पाकिस्तान ने उसकी निंदा की। ऐसे में पाकिस्तान को ‘मददगार’ मानना एक भ्रामक धारणा साबित हो सकती है—जैसा कि अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान के बदलते रुख ने साबित किया है। ईरान को इस बार अपने पुराने अनुभवों से सीख लेने की जरूरत है।

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