फूलों की घाटी: पौराणिकता और प्रकृति का संगम

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित फूलों की घाटी सिर्फ एक दर्शनीय स्थल नहीं, बल्कि भारतीय पौराणिक इतिहास का भी हिस्सा है। यह घाटी समुद्र तल से लगभग 3,658 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसमें सैकड़ों प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि रामायण और महाभारत दोनों में इस घाटी का उल्लेख मिलता है, और यही वह स्थान है जहां से भगवान हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आए थे।

इस घाटी की खोज 1931 में उस समय हुई जब तीन ब्रिटिश पर्वतारोही—फ्रैंक एस स्मिथ, एरिक शिप्टन और आरएल होल्ड्सवर्थ—माउंट कामेट से लौटते समय रास्ता भटक गए थे। उन्होंने इस जगह को “Valley of Flowers” नाम दिया। फ्रैंक स्मिथ ने इस अनुभव को 1938 में प्रकाशित अपनी किताब Valley of Flowers में साझा किया। हालाँकि स्थानीय भोटिया जनजाति इसे पहले से ही पवित्र और परियों का वास मानती थी।

फूलों की घाटी नंदा देवी बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है, जिसकी स्थापना 1988 में की गई। यह क्षेत्र 1982 से नेशनल पार्क घोषित होने के बाद कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया था, लेकिन अब इसे सीमित पर्यटन के लिए खोला गया है। यहाँ पहुंचने के लिए देहरादून से गोविंद घाट तक सड़क मार्ग और फिर 16 किलोमीटर लंबा ट्रैक पैदल तय करना होता है। पास ही स्थित हेमकुंड साहिब और जोशीमठ जैसे धार्मिक स्थल भी इस क्षेत्र की आध्यात्मिक महत्ता को और बढ़ाते हैं।

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