सिंध में नहरें: पानी की जंग या बंटवारे की आहट?

कराची: पाकिस्तान के सिंध प्रांत में ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव (GPI) के तहत प्रस्तावित छह नहर परियोजनाओं के खिलाफ आक्रोश चरम पर है। इनमें पांच नहरें सिंधु नदी और एक सतलुज नदी पर बननी हैं, जिसे सरकार ने 3.3 अरब डॉलर की लागत से पंजाब के चोलिस्तान रेगिस्तान को उपजाऊ बनाने का दावा किया था। हालांकि सरकार ने परियोजना रद्द करने की घोषणा की, लेकिन 12 दिनों से सड़कों पर प्रदर्शन और हाईवे जाम जारी हैं। सिंध के लोग इसे पंजाब और सेना की “पानी की लूट” करार दे रहे हैं। पर्यावरण कार्यकर्ता जुल्फिकार अली भुट्टो जूनियर ने कहा, “यह नहरें कॉरपोरेट खेती के लिए हैं, न कि किसानों की भलाई के लिए।”

सिंध, जो सिंधु नदी पर निर्भर निचला तटवर्ती क्षेत्र है, पहले ही 1991 के जल समझौते के तहत 20% कम पानी पा रहा है, और रबी सीजन में यह कमी 45% तक पहुंच गई। विशेषज्ञों का कहना है कि नहरें बनने से सिंध डेल्टा में समुद्री पानी का घुसपैठ बढ़ेगा, जिससे खेती योग्य जमीन बंजर हो सकती है। सिंध के किसान लतीफ शाह ने कहा, “हमारी जमीन सूख जाएगी, और हमारी आजीविका खत्म हो जाएगी।” विरोध प्रदर्शनों ने कराची बंदरगाह पर व्यापार को ठप कर दिया, जहां 30,000 ट्रक और 90,000 ड्राइवर फंसे हैं।

यह विवाद सिर्फ पानी का नहीं, बल्कि पंजाब-सिंध के ऐतिहासिक तनाव का प्रतीक है। सिंध में “पंजाब-इस्तान” का तंज आम है, जो पंजाब के कथित वर्चस्व को दर्शाता है। पीपीपी नेता बिलावल भुट्टो ने केंद्र से समर्थन वापसी की धमकी दी है। 5 मई को बड़ा प्रदर्शन और 11 मई को रेलवे बंद की चेतावनी दी गई है। विश्लेषक चेताते हैं कि यदि जल विवाद सुलझा नहीं, तो यह पाकिस्तान की एकता के लिए खतरा बन सकता है।

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