अर्मेनिया का यू-टर्न: पुतिन की पकड़ कमजोर

साउथ कॉकसस में रूस का वर्चस्व अब संकट में नजर आ रहा है। पहले अजरबैजान ने तेवर दिखाए और अब दशकों पुराना सहयोगी अर्मेनिया भी पुतिन से दूरी बना रहा है। हाल की तीन प्रमुख घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अर्मेनिया अब अपनी विदेश नीति में निर्णायक बदलाव की ओर बढ़ रहा है, जो क्रेमलिन के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।

सबसे पहले, अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच शांति वार्ता की तैयारी हो रही है। दुबई में प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान और राष्ट्रपति इलहाम अलीयेव की संभावित मुलाकात दोनों देशों के बीच दशकों पुराने नागोर्नो-काराबाख विवाद में नया अध्याय खोल सकती है। इसके साथ ही, अर्मेनिया की संसद में रूसी सरकारी मीडिया पर बैन लगाने का प्रस्ताव भी आया है, जो रूस के सूचना प्रभुत्व को कमजोर करने वाला कदम है।

तीसरा बड़ा घटनाक्रम अर्मेनिया और चीन के बीच बढ़ती रणनीतिक नजदीकी है। विदेश मंत्री अरारत मिर्जोयान ने चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ को अर्मेनिया की ‘क्रॉसरोड्स ऑफ पीस’ परियोजना से जोड़ने की बात कही है। यह संकेत है कि अर्मेनिया अब रूस के बजाए चीन को प्राथमिक साझेदार मान रहा है। पुतिन के लिए यह घटनाक्रम न केवल कूटनीतिक झटका है, बल्कि साउथ कॉकसस में रूस की घटती पकड़ का प्रमाण भी है।

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