ड्रोन वॉर में पिछड़ रहा ताइवान, चीन बना बड़ी चुनौती

ताइवान और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच ड्रोन वॉर का महत्व तेजी से बढ़ा है। जहां एक ओर चीन की सैन्य और तकनीकी क्षमता भारी पड़ रही है, वहीं ताइवान अपने सीमित संसाधनों के साथ संतुलन साधने की जद्दोजहद कर रहा है। ग्लोबल फायरपावर की रिपोर्ट बताती है कि चीन के पास ताइवान की तुलना में कई गुना अधिक सैनिक और एयरक्राफ्ट हैं, जिससे पारंपरिक युद्ध में ताइवान की स्थिति कमजोर नजर आती है।

इस कमजोरी की भरपाई के लिए ताइवान अब ड्रोन तकनीक में निवेश बढ़ा रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद ताइवान ने ‘ड्रोन नेशनल टीम’ योजना शुरू की, लेकिन अब भी चीन के मुकाबले वह काफी पीछे है। जहां चीन के पास हजारों उन्नत ड्रोन हैं, वहीं ताइवान की वार्षिक निर्माण क्षमता केवल 8,000–10,000 यूनिट तक सीमित है। 2028 तक 1.8 लाख ड्रोन का लक्ष्य तय किया गया है, लेकिन यह मौजूदा गति से 18 गुना ज्यादा उत्पादन की मांग करता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीकी क्षमता होने के बावजूद, ताइवान को चीन की सस्ती कीमतों और वैश्विक मार्केट हिस्सेदारी से कड़ी चुनौती मिल रही है। एक रक्षा विश्लेषक ने कहा, “ताइवान को ड्रोन वॉर की होड़ में बने रहने के लिए सिर्फ निर्माण नहीं, बल्कि रणनीतिक सहयोग और नवाचार पर भी ध्यान देना होगा।” आने वाले वर्षों में यह तकनीकी युद्ध एशिया की शक्ति संतुलन को नई दिशा दे सकता है।

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