भारत की फार्मा रणनीति से हिला चीन का दबदबा

भारत की फार्मा कंपनियां वैश्विक मंच पर अब तेजी से चीन की जगह ले रही हैं। अमेरिका-चीन के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव के बीच भारत की कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप के साथ अपने रिश्ते मजबूत किए हैं। विशेष रूप से CDMO (Contract Development and Manufacturing Organizations) के क्षेत्र में भारत ने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। हैदराबाद स्थित सुवेन फार्मास्युटिकल्स और बायोकोन की सहायक कंपनी सिंजीन इंटरनेशनल द्वारा अमेरिकी कंपनियों के अधिग्रहण से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की फार्मा कंपनियां अब सिर्फ सप्लायर नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदार बन रही हैं।

दिसंबर में सुवेन फार्मा ने अमेरिकी रिसर्च कंपनी एनजे बायो इंक की 65 मिलियन डॉलर में हिस्सेदारी खरीदी, जिससे वह कैंसर दवाओं के क्षेत्र में एक अग्रणी CDMO बन गई। वहीं सिंजीन इंटरनेशनल ने बाल्टीमोर बेस्ड इमर्जेंट बायो सॉल्यूशंस को 36.5 मिलियन डॉलर में अधिग्रहित किया। इन सौदों से भारतीय फार्मा कंपनियों की अमेरिका में पकड़ मजबूत हुई है और विदेशी ग्राहकों का भरोसा भी बढ़ा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की घटती विश्वसनीयता और सप्लाई चेन संकट ने पश्चिमी देशों को भारत की ओर देखने को मजबूर किया है। लोएस्ट्रो की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और यूरोप अब अपने नजदीकी सहयोगियों से ही दवा उत्पादन कराना चाहते हैं। भारत की फार्मा कंपनियां इस बदलाव के लिए तैयार हैं और तकनीकी रूप से सक्षम कंपनियों के अधिग्रहण की दिशा में आगे बढ़ रही हैं, जिससे उनका वैश्विक असर और अधिक बढ़ने की संभावना है।

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