भारत में दुर्लभ धातुओं की भरमार, फिर भी चीन पर निर्भर क्यों?

भारत दुनिया में दुर्लभ मृत्तिका धातुओं का तीसरा सबसे बड़ा भंडार रखता है, फिर भी उत्पादन और उपयोग के लिए उसे चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। इन धातुओं का व्यापक उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन टरबाइनों और रक्षा उपकरणों में होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, दुर्लभ धातु भले ही ‘दुर्लभ’ न हों, लेकिन इनका निष्कर्षण और परिष्करण जटिल, महंगा और पर्यावरणीय रूप से खतरनाक होता है।

भारतीय खनिज सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के पास लगभग 6.9 मिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ मृत्तिका भंडार है, जो चीन (44 मिलियन मीट्रिक टन) और ब्राजील (21 मिलियन मीट्रिक टन) के बाद आता है। इसके बावजूद भारत वार्षिक उत्पादन में महज 2,900 मीट्रिक टन पर अटका हुआ है, जबकि चीन 2.7 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन करता है। इसका प्रमुख कारण भारत में परिष्करण और तकनीकी अवसंरचना का अभाव, निजी निवेश की कमी और पर्यावरणीय प्रतिबंध हैं।

सार्वजनिक और निजी सहयोग से भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है। इंडियन रियर अर्थ लिमिटेड जैसे संस्थानों को तकनीकी नवाचार और वैश्विक साझेदारियों से सशक्त बनाना होगा। जैसे-जैसे दुनिया चीन की एकाधिकार से बाहर निकलना चाहती है, भारत के पास एक अहम भूमिका निभाने का अवसर है—पर इसके लिए नीतिगत प्रतिबद्धता और तकनीकी निवेश अनिवार्य है।

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