श्रीकांत बोला: अंधत्व को हराकर बनाई 150 करोड़ की कंपनी

आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव में जन्मे श्रीकांत बोला ने जन्मजात दृष्टिहीनता को कभी अपनी राह का रोड़ा नहीं बनने दिया। समाज के तानों और स्कूल में उपेक्षा का सामना करने के बावजूद, उन्होंने 12वीं बोर्ड परीक्षा में 98% अंक हासिल किए। लेकिन IIT में प्रवेश से वंचित होने पर भी श्रीकांत ने हार नहीं मानी। उन्होंने अमेरिका के प्रतिष्ठित MIT में आवेदन किया और इतिहास रचते हुए वहां दाखिला पाने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय अंध छात्र बने। उनकी यह उपलब्धि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो बाधाओं से घबराता है।

MIT से पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीकांत ने विदेश में आरामदायक जीवन को ठुकराकर भारत लौटने का फैसला किया। 2012 में उन्होंने ‘बोलेन्ट इंडस्ट्रीज’ की स्थापना की, जो पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद बनाती है और विशेष रूप से दिव्यांगों को रोजगार देती है। कंपनी को रतन टाटा जैसे दिग्गज निवेशकों का समर्थन मिला, और 2018 तक इसकी कीमत 150 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। श्रीकांत की कहानी केवल व्यावसायिक सफलता नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की मिसाल है।

2017 में फोर्ब्स की ’30 अंडर 30′ सूची में जगह बनाने वाले श्रीकांत बोला को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें CII इमर्जिंग एंटरप्रेन्योर अवॉर्ड शामिल है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरित होकर उन्होंने एक बार कहा था, “मैं भारत का पहला अंध राष्ट्रपति बनना चाहता हूं।” उनकी यह अटल इच्छाशक्ति आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।

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