कर्नाटक जाति सर्वे: लिंगायत-वोक्कालिगा को झटका

कर्नाटक में 2015 के सामाजिक-शैक्षिक सर्वेक्षण (जाति सर्वे) ने राज्य के सामाजिक ढांचे को हिलाकर रख दिया है। सर्वे के मुताबिक, 1984 के वेंकटस्वामी आयोग के सर्वे की तुलना में अनुसूचित जातियों और मुस्लिम आबादी में 90% से अधिक की वृद्धि हुई है, जबकि वीराशैव-लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी 17% से घटकर 11% रह गई। अनुसूचित जातियां अब सबसे बड़ा समूह हैं, इसके बाद मुस्लिम, लिंगायत और वोक्कालिगा हैं। यह बदलाव लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के लिए झटके के रूप में देखा जा रहा है, जो दशकों से राज्य की राजनीति पर हावी रहे हैं।

कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष सीएस द्वारकानाथ ने बताया, “लिंगायत समुदाय ने आरक्षण लाभ के लिए हिंदू सदर, गनीगा जैसी अलग पहचान अपनाई, जिससे उनकी गणना कम हुई।” 1984 में लिंगायत पहले और मुस्लिम चौथे स्थान पर थे, लेकिन 2015 के जाति सर्वे ने इस क्रम को उलट दिया। लिंगायत और वोक्कालिगा नेताओं ने सर्वे को ‘अवैज्ञानिक’ करार देते हुए नया सर्वेक्षण मांगा है। मंड्या के कांग्रेस विधायक रविकुमार गौड़ा ने कहा, “वोक्कालिगा आबादी एक करोड़ से अधिक है, रिपोर्ट में कम दिखाया गया। इसे सार्वजनिक करना चाहिए।”

सिद्धरमैया सरकार ने 2015 में यह सर्वे शुरू किया था, जिसे 2018 में पूरा किया गया। फरवरी 2024 में जयप्रकाश हेगड़े ने इसे अंतिम रूप दिया, लेकिन लिंगायत-वोक्कालिगा नेताओं के विरोध और कांग्रेस के भीतर मतभेदों ने इसे लागू करने में बाधा डाली। यह जाति सर्वे कर्नाटक की राजनीति और सामाजिक समीकरणों को नया आकार दे सकता है।

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