ट्रंप-पुतिन बैठक: भारत के लिए बढ़ती कूटनीतिक चिंता

अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की लंबी बैठक ने वैश्विक राजनीति में नए समीकरण खड़े कर दिए हैं। चर्चाएं हैं कि आने वाले दिनों में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की भी इस वार्ता में शामिल हो सकते हैं, जिससे यूक्रेन युद्ध रोकने की सहमति बन सकती है। सूत्रों के अनुसार, यूक्रेन लुहान्स्क, डोनेत्स्क और क्रीमिया पर अपना दावा छोड़ सकता है, जबकि अमेरिका और यूरोपीय देश सुरक्षा की गारंटी देंगे।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह समझौता होता है तो दशकों पुरानी अमेरिका-रूस की प्रतिद्वंद्विता खत्म हो सकती है। हालांकि, भारत के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण होगी। अब तक नई दिल्ली ने रूस के साथ करीबी संबंधों के जरिए अमेरिका पर दबाव की रणनीति अपनाई थी। लेकिन यदि रूस अमेरिका के खेमे में दिखने लगे तो भारत को पाकिस्तान या चीन से जुड़े किसी संभावित संघर्ष में रूस का वही निःशर्त समर्थन मिलना मुश्किल हो सकता है।

इसके अलावा संकेत हैं कि ट्रंप अक्टूबर में चीन का दौरा कर व्यापारिक समझौता करने की तैयारी में हैं। विश्लेषकों के मुताबिक, यह “रिवर्स किसिंगर रणनीति” है—पहले रूस से रिश्ते सुधारकर चीन को अलग करना और फिर बीजिंग के साथ भी तालमेल बनाना। ऐसी स्थिति में भारत को अपनी विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति पर नए सिरे से सोचने की आवश्यकता होगी, क्योंकि अमेरिका, रूस और चीन की नजदीकियां दक्षिण एशिया की शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं।

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