नेतन्याहू के ‘ग्रेटर इजराइल’ बयान से मिडिल ईस्ट में हलचल

गाजा में सैन्य कार्रवाई के बीच इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक बार फिर ‘ग्रेटर इजराइल’ का उल्लेख कर खाड़ी देशों में राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। नेतन्याहू ने इसे “ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मिशन” बताते हुए संकेत दिया कि उनकी दृष्टि मौजूदा सीमाओं से कहीं आगे तक फैली हुई है। इस विचार से फिलिस्तीन के साथ-साथ जॉर्डन, मिस्र, सीरिया और इराक के कुछ हिस्से भी इजराइली दायरे में आ सकते हैं।

‘ग्रेटर इजराइल’ का जिक्र धार्मिक और राजनीतिक दोनों संदर्भों में होता है। बाइबिल के अनुसार, यह नील नदी से फरात नदी तक फैली भूमि का वर्णन है। आधुनिक राजनीति में इसकी चर्चा पहली बार 1967 के छह दिवसीय युद्ध के बाद तेज हुई, जब इजराइल ने अपनी सीमाएं बढ़ाईं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि यह अवधारणा लागू होती है, तो इजराइल का क्षेत्रफल लगभग 22 हजार वर्ग किलोमीटर से बढ़कर एक लाख वर्ग किलोमीटर तक हो सकता है।

मध्यपूर्व के कई देश इसे ज़ायोनी विस्तारवाद की योजना मानते हैं। 1990 में काहिरा में अरब शिखर सम्मेलन के दौरान भी यह मुद्दा उठा था, जब लीबियाई नेता मुअम्मर गद्दाफी ने ‘ग्रेटर इजराइल’ का कथित नक्शा दिखाकर चेतावनी दी थी। विश्लेषकों का मानना है कि नेतन्याहू का ताज़ा बयान न केवल खाड़ी देशों को असहज कर रहा है, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक नई चुनौती बन सकता है।

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