भारत की ICBM ताकत: क्या अग्नि-5 बना पाएगा संतुलन?

नई दिल्ली। जब बात वैश्विक सामरिक शक्ति की होती है, तो इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBM) निर्णायक भूमिका निभाती हैं। रूस की RS-28 Sarmat, अमेरिका की Minuteman III और चीन की DF-41 मिसाइलें अपनी हजारों किलोमीटर की रेंज से धरती के किसी भी हिस्से को निशाना बना सकती हैं। ये मिसाइलें न केवल परमाणु क्षमता से लैस हैं, बल्कि MIRV तकनीक से एकसाथ कई वार कर सकती हैं। इनकी क्षमताएं वैश्विक संतुलन में अहम भूमिका निभाती हैं।

भारत की अग्नि-5 मिसाइल इसी परिप्रेक्ष्य में गौर करने लायक है। इसकी आधिकारिक रेंज भले ही 5,500 किलोमीटर बताई गई हो, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह 8,000 किलोमीटर तक वार कर सकती है, जिससे यह एशिया, यूरोप और अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों को कवर कर सकती है। हालांकि, रूस और चीन की ICBM की तुलना में भारत की मिसाइल अभी भी पूर्ण वैश्विक कवरेज से थोड़ी पीछे मानी जाती है। इसके बावजूद, अग्नि-5 भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता और परमाणु त्रिकोण को संतुलित करने की दिशा में बड़ा कदम है।

विशेषज्ञों के अनुसार, भारत अभी ICBM रेस में संयमित नीति अपनाए हुए है, जिसकी वजह उसकी ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति और क्षेत्रीय फोकस हो सकती है। जहां अमेरिका और रूस की मिसाइलें वैश्विक हमले की पूरी क्षमता रखती हैं, वहीं भारत अब तक आत्मरक्षा और सामरिक प्रतिरोध की नीति को प्राथमिकता देता आया है। आने वाले वर्षों में भारत की मिसाइल तकनीक में और विस्तार की संभावना जताई जा रही है।

 

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