रोहिंग्या संकट बिम्सटेक में छाया: बांग्लादेश के यूनुस ने म्यांमार पर साधा निशाना

बैंकॉक, 4 अप्रैल 2025: थाईलैंड में चल रहे बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) सम्मेलन में रोहिंग्या शरणार्थी संकट एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गया। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाते हुए म्यांमार की आलोचना की और सख्त कार्रवाई की मांग की। यूनुस ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि म्यांमार के रखाइन प्रांत में अस्थिरता इस संकट की जड़ है और रोहिंग्याओं की सुरक्षित वापसी के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी है।
सम्मेलन में बोलते हुए यूनुस ने कहा, “बिम्सटेक को इस संकट के समाधान के लिए म्यांमार के साथ मिलकर काम करना चाहिए। रखाइन में संघर्षरत पक्षों के बीच संवाद बढ़ाना होगा ताकि रोहिंग्या अपने घरों को लौट सकें।” उन्होंने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की हालिया चेतावनी का जिक्र करते हुए कहा, “मानवीय संकट और अकाल की आशंका बढ़ रही है। ऐसे में आपूर्ति चैनल बनाना और शांति स्थापित करना बेहद जरूरी है।”
बांग्लादेश पर बढ़ता बोझ
बांग्लादेश पिछले कई सालों से रोहिंग्या शरणार्थियों का ठिकाना बना हुआ है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान में यहाँ 12 लाख से ज्यादा रोहिंग्या रह रहे हैं। 2017 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा भड़कने के बाद लाखों रोहिंग्या मुसलमानों ने जान बचाकर बांग्लादेश में शरण ली थी। कॉक्स बाजार के अस्थायी शिविरों में रह रहे ये शरणार्थी अब न सिर्फ वहाँ की संसाधन व्यवस्था पर दबाव डाल रहे हैं, बल्कि सुरक्षा के लिए भी चुनौती बनते जा रहे हैं।
एक स्थानीय कार्यकर्ता ने बताया, “ये शिविर अस्थायी थे, लेकिन सालों बीत गए और हालात बदतर होते जा रहे हैं। बांग्लादेश ने मानवीयता दिखाई, पर अब यह बोझ असहनीय हो रहा है।” संयुक्त राष्ट्र ने इस संकट से निपटने में बड़ी भूमिका निभाई है, लेकिन स्थायी समाधान की कमी साफ दिख रही है।
राज्यविहीनता का खतरा
रोहिंग्या संकट की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि ये लोग ‘राज्यविहीन’ होने की कगार पर हैं। म्यांमार उन्हें अपनी नागरिकता देने से इनकार करता है, जबकि बांग्लादेश का कहना है कि वह अनिश्चित काल तक इस जिम्मेदारी को नहीं उठा सकता। कई रोहिंग्या अब मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों की ओर रुख कर रहे हैं, लेकिन वहाँ भी उन्हें दरवाजे बंद मिल रहे हैं। हाल ही में इंडोनेशिया ने दर्जनों शरणार्थियों को समुद्र में वापस धकेल दिया, जिससे उनकी दुर्दशा और उजागर हुई।
मानवाधिकार विशेषज्ञ रेहाना अहमद कहती हैं, “यह संकट अब वैश्विक हो चुका है। अगर कोई देश इन लोगों को स्वीकार नहीं करेगा, तो ये पूरी तरह देशविहीन हो जाएंगे। यह न सिर्फ मानवीय, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी खतरा है।” बांग्लादेश का मानना है कि इस समस्या का असर पूरे दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया पर पड़ सकता है।
बिम्सटेक से उम्मीदें
यूनुस ने बिम्सटेक सम्मेलन को एक मौके के तौर पर देखा, जहाँ म्यांमार पर दबाव बनाया जा सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि क्षेत्रीय संगठन को इस मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। विश्लेषकों का कहना है कि बिम्सटेक, जिसमें भारत, थाईलैंड, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे देश शामिल हैं, इस संकट को हल करने में अहम हो सकता है। हालांकि, म्यांमार की सैन्य सरकार का रवैया अब तक टालमटोल वाला रहा है।
एक राजनयिक सूत्र ने बताया, “म्यांमार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है, लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है। बिम्सटेक में यह चर्चा एक शुरुआत है, पर ठोस नतीजे निकलना अभी मुश्किल लगता है।” फिर भी, यूनुस की यह अपील क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में एक सकारात्मक कदम मानी जा रही है।
आगे की राह
रोहिंग्या संकट अब सिर्फ बांग्लादेश या म्यांमार की समस्या नहीं रह गया है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो बिम्सटेक जैसे मंचों पर गंभीर चर्चा और समाधान की मांग करता है। यूनुस की म्यांमार से शांति बहाली और शरणार्थियों की वापसी की मांग को कितना समर्थन मिलता है, यह आने वाले दिनों में साफ होगा। लेकिन इतना तय है कि इस संकट का असर क्षेत्रीय स्थिरता और मानवीय मूल्यों पर गहरा पड़ रहा है।
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