इमरजेंसी पर शशि थरूर का प्रहार: असहमति कुचली गई

नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इमरजेंसी की 50वीं वर्षगांठ पर एक लेख के माध्यम से तत्कालीन हालात पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने लिखा कि 25 जून 1975 को भारत में लोकतंत्र ने सांसें थाम ली थीं और 21 महीनों तक मौलिक अधिकार, प्रेस की आज़ादी और राजनीतिक असहमति पर शिकंजा कसा गया। थरूर ने इंदिरा गांधी की उस समय की सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सत्ता का अत्यधिक केंद्रीकरण और असहमति को देशद्रोह मानने की प्रवृत्ति ने लोकतांत्रिक संस्थानों की नींव हिला दी।

थरूर ने कहा कि इमरजेंसी के दौरान जबरन नसबंदी अभियान और झुग्गी-झोपड़ियों के ध्वस्तीकरण जैसे अमानवीय कदम, सत्ता के दुरुपयोग के जीवंत उदाहरण थे। उन्होंने न्यायपालिका की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण जैसे अधिकारों को भी निलंबित कर दिया गया, जिससे लोकतंत्र की आत्मा को आघात पहुंचा। लेख में उन्होंने स्वीकारा कि कांग्रेस के लिए यह मुद्दा असहज रहा है, लेकिन सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।

उन्होंने स्पष्ट किया कि आज का भारत 1975 वाला भारत नहीं है, लेकिन इमरजेंसी से मिले सबक आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। लोकतंत्र की रक्षा के लिए स्वतंत्र प्रेस, मजबूत न्यायपालिका और नागरिक स्वतंत्रताओं का संरक्षण जरूरी है। थरूर का यह लेख ऐसे समय आया है जब मौजूदा राजनीतिक माहौल में लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर तीखी बहस जारी है। उनका कहना है, “लोकतंत्र की कोई गारंटी नहीं होती, यह एक मूल्यवान धरोहर है जिसे बचाकर रखना हमारी जिम्मेदारी है।”

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