आपातकाल में ‘संविधान हत्या’, सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर उपराष्ट्रपति धनखड़ की कड़ी टिप्पणी

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 1975 के आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला अध्याय बताते हुए कहा कि उस दौरान संविधान का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया था। उपराष्ट्रपति आवास पर राज्यसभा इंटर्न्स को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने न केवल न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाई बल्कि कार्यपालिका को तानाशाही की वैधता भी प्रदान की।

धनखड़ ने कहा, “25 जून को केवल एक व्यक्ति की सलाह पर आपातकाल लागू हुआ, जबकि संविधान में स्पष्ट है कि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सामूहिक सलाह पर काम करना चाहिए।” उन्होंने बताया कि आपातकाल के कुछ घंटों में ही एक लाख से अधिक लोगों को जेल भेजा गया, प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली गई और देशभर की संस्थाएं चरमरा गईं। “यह केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए चेतावनी है,” उन्होंने कहा।

न्यायपालिका पर टिप्पणी करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश के नौ उच्च न्यायालयों ने नागरिक अधिकारों की रक्षा की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन निर्णयों को पलट दिया। उन्होंने इस फैसले को “न्यायिक इतिहास की सबसे काली भूल” करार दिया। कार्यक्रम के अंत में उन्होंने युवाओं से योग को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाने का आह्वान किया और धर्मांतरण पर चिंता जताते हुए भारतीय संस्कृति को संरक्षित रखने पर बल दिया।

ताज़ा खबर

दुनिया पर राज करतीं रिलायंस, एनवीडिया, टोयोटा

LAC पर तैयार दुनिया का सबसे ऊंचा एयरबेस

शाहरुख खान को क्यों लगा- शायद मैं अच्छा बाप नहीं हूं

क्या ‘सैयारा’ कोरियन फिल्म की कॉपी है? उठे सवाल