अमेरिकी सीजफायर से मिडिल ईस्ट में थमा तनाव

ईरान और इजराइल के बीच 12 दिन चली भीषण जंग के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हस्तक्षेप से सीजफायर हो गया है। इस युद्धविराम से पूरे खाड़ी क्षेत्र में फैल रहे संघर्ष पर फिलहाल विराम लग गया है। ट्रंप की पहल तब सामने आई जब ईरान ने कतर स्थित अमेरिकी मिलिट्री बेस पर मिसाइलें दाग दीं, जिससे सऊदी अरब और कतर भी भड़क उठे। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सीजफायर न हुआ होता, तो यह टकराव बड़े मुस्लिम देशों को आमने-सामने ला सकता था।

13 जून को इजराइल द्वारा ईरान के न्यूक्लियर वैज्ञानिकों पर हमले के साथ यह लड़ाई शुरू हुई थी। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने तेल अवीव पर मिसाइलें दागीं और फिर अमेरिका के हमले ने संघर्ष को और भड़का दिया। ईरान के कतर में किए गए हमले को लेकर सऊदी अरब ने इसे “गैर-जिम्मेदाराना और अस्वीकार्य” करार दिया, जबकि कतर ने अपनी संप्रभुता पर हमले की बात कही। इन प्रतिक्रियाओं ने स्पष्ट कर दिया कि ईरान अब क्षेत्र में अकेला नहीं रह गया है और मुस्लिम देश भी उसके विरोध में खड़े होने लगे हैं।

इस सीजफायर से सबसे बड़ा लाभ ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई को मिला। इजराइल और अमेरिका के निशाने पर खामेनेई की सत्ता और जान दोनों थीं, लेकिन युद्धविराम के चलते उन्होंने फिलहाल दोनों को बचा लिया है। क्षेत्रीय विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम खाड़ी देशों को 1980 के ईरान-इराक युद्ध जैसे संकट से बचा गया। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि यह सीजफायर कितना स्थायी साबित होता है।

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